Wednesday, November 14, 2018

ये हैं पाकिस्तान की 7 प्रभावशाली महिलाएं

कई लड़कियों ने ये भी बताया कि पुरुष किस तरह महिलाओं की पसंद और नापसंद के आधार पर उन्हें अच्छी महिला और बुरी महिला जैसे खांचों में फिट करते हैं.
इनमें से कई लड़कियां इस बात पर भी एक राय थीं कि समाज ही महिलाओं के ख़िलाफ़ सोच को विकसित करने के लिए ज़िम्मेदार है.
इस दौरान दफ़्तरों, शिक्षण संस्थानों के परिसरों और गलियों में यौन शोषण, ईव टीज़िंग, सोशल मीडिया पर आवारगी, लैंगिक भेदभाव और निर्णय लेने के अधिकार जैसे मुद्दे भी उठाए गए.
इस आयोजन के बाद एक बार फिर मैं इन लड़कियों की बहादुरी की कायल हो गई. इनमें से कई लड़कियां पहली बार कैमरे का सामना कर रही हैं लेकिन ये महिलाएं बेहिचक होकर अपने विचार रख रही थीं.
मैंने उनकी आवाज़ में निराशा महसूस की. मुझे लगता है कि यही ग़ुस्सा लोगों को निर्भीक बनाता है. ये लड़कियां निश्चित रूप से समाज की ओर से मिल रहे बर्ताव पर नाराज़ थीं.
मैं सिंध की महिलाओं के बारे में जो सोचती थीं वो पूरी तरह से बदल गई. बीबीसी शी इवेंट के दौरान अब तक मेरी मुलाक़ात ऐसी महिलाओं से हुई जिनके साहस को देखकर मैं दंग हूं.
देखते हैं बीबीसी शी के सफर में हमारे अगले पड़ाव ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में क्या होता है.
जिन लोगों ने 'न्यूटन' फ़िल्म देखी है उन्हें उस पत्रकार मंगल कुंजाम का किरदार याद होगा जो माओवादियों के चुनाव बहिष्कार के बीच बस्तर के उस सुदूर इलाक़े में पहुंचा जहाँ फ़िल्म के हीरो न्यूटन कुमार (राज कुमार राव) मतदान कराने पहुंचे थे.
मंगल कुंजाम एक वास्तविक पात्र हैं जो बस्तर के ही रहने वाले आदिवासी पत्रकार हैं. मगर 12 नवंबर को उनकी भूमिका बदल गयी थी.
वह एक मतदाता भी हैं जिन्होंने पिछले विधानसभा के चुनावों में माओवादियों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
मगर इस बार मंगल कुंजाम ने वोट नहीं डाला है.
कुंजाम गुमियापाल के रहने वाले हैं मगर इस बार उनके गाँव का मतदान केंद्र इरोली शिफ्ट कर दिया गया था जो वहां से पैदल 4 किलोमीटर की दूरी पर है.
न तो इस बार कुंजाम ने वोट डाला न ही उनके गाँव के किसी भी व्यक्ति ने.
मतदान के दिन मैं उन्हें ढूंढता हुआ उनके सुदूर गाँव पहुंचा जहां सन्नाटा पसरा हुआ था. जगह-जगह पेड़ों पर माओवादियों के बहिष्कार का आह्वान करने वाले पर्चे टंगे हुए थे.
कुंजाम ने क्यों वोट नहीं डाला? वह कहते हैं, "ये पूरा इलाक़ा नक्सल प्रभावित है. दूर-दराज़ के गाँव हैं जहाँ आने-जाने के लिए सिर्फ़ पैदल यात्रा करनी पड़ती है. मैंने पिछली बार वोट डाला था. मगर कुछ ही दिनों के अन्दर फिर मुझे माओवादियों का फ़रमान मिला और मुझे उनके सामने पेश होना पड़ा."
मंगल कुंजाम बताते हैं कि माओवादियों ने उन्हें डराया धमकाया. चूँकि वह पत्रकार थे इसलिए ऐसा फिर नहीं करने की हिदायत के साथ उन्हें छोड़ दिया गया.
वह कहते हैं, "सुरक्षा का सरकार दावा करती है मगर ये सिर्फ़ मतदान के दिन तक के लिए है. मतदान हुआ, सुरक्षाबल ग़ायब. हमें तो यहीं रहना है. इन्हीं इलाक़ों में रहना है जहाँ माओवादियों की हुक़ूमत है. उनके फ़रमान की अवहेलना महंगी पड़ती है. मतदान के बाद हमें कौन बचाने आयेगा? इसलिए मैंने और मेरे गाँव के किसी व्यक्ति ने वोट नहीं डाला है."

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